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लेखनी कहानी -05-Jan-2023 (9) आम के आम, गुठलीयों के दाम ( मुहावरों की दुनिया )



शीर्षक = आम के आम, गुठलीयों के दाम



अगला दिन, एक नयी सुबह बाहे फेलाई उन सब के इस्तक़बाल में खड़ी थी, हर दिन की भांति राधिका और मानव जल्दी उठ गए थे और नहा धोकर पूजा पाठ करके बाहर बरामदे में बैठे थे


दीन दयाल जी भी भोर के बाद खेत पर गए थे और अब वो भी आ चुके थे, सब लोग खुश थे, हसीं मज़ाक कर रहे थे, एक हफ्ता होने आया था राधिका और मानव को यहाँ आये, लेकिन कब एक हफ्ता गुज़रा उन्हें पता ही नही चला


मानव ने राधिका को बताया की उसकी टीचर ने जो प्रतियोगिता हेतु मुहावरें दिए थे, उनमे से वो अब तक अपने दादा की मदद से 8 पर कहानियाँ लिखने में सक्षम हो पाया है, अब उसे लगने लगा है, कि भले ही वो जीते या ना जीते, क्लास का मॉनिटर बने या ना बने, लेकिन इन मुहावरों पर अपने दादा से बनायीं गयी कहानियों के माध्यम से उसे प्रतियेक मुहावरें का अर्थ अच्छे से समझ आ रहा है और हर मुहावरें पर बनी कहानी से उसे सीख भी मिल रही है और तो और वो अगर प्रथम नही भी आया तब भी उसे कोई अफ़सोस नही होगा क्यूंकि उसने कम से कम भाग तो लिया इस बहाने उसे बहुत कुछ सीखने को मिला, "


"अरे वा, ये तो बहुत अच्छा है, ज़ब तुम्हारे दादा थक जाए तो मुझे बताना मेरे पास भी बहुत से ऐसे किस्से है, जिनसे कहानियाँ बन सकती है " पास बैठी सुष्मा जी ने कहा

राधिका मुस्कुरा रही थी, और बात आगे बढ़ती इससे पहले दरवाज़े पर किसी की दस्तक होती है, दीन दयाल जी या सुष्मा जी में से कोई उठता दरवाज़ा खोलने के लिए उससे पहले ही मानव दौड़ता हुआ दरवाज़े पर जा पंहुचा और दरवाज़ा खोल दिया


सामने एक आदमी को देखा जो की अपने सर पर कुछ रखा हुआ था, मानव उससे कुछ पूछता तब ही उस आदमी ने कहा " ज़रूर तुम दीना के पोते हो "

मानव को कुछ समझ नही आया और उसने हाँ में गर्दन हिलाते हुए कहा " आप कौन? "

सामने खड़ा आदमी उसके सवाल का जवाब देता तब ही सुष्मा जी वहाँ आयी और उस आदमी को देख बोली " भैया आप,, आओ आओ अंदर आओ "


सुष्मा जी अपने भाई का हाथ पकड़ कर उसे अंदर ले आती और अपनी बहु और पोते से मिलवाती

"आओ, आओ,,, साले साहब बड़े दिन बाद चककर लगाया,भूल गए थे क्या हमें " दीना नाथ जी ने कहा

"नही नही जीजा जी, आप को कैसे भूल सकते है, बस खेती बाड़ी में व्यस्त था, फसल तैयार थी उसे काटना था बाजार ले जाकर बेचना था बस इसी में कब समय निकल गया ज्ञात ही नही हुआ, ये ले बहना अपने खेत का अनाज तेरा हिस्सा " सुष्मा जी के भाई सुरेश ने कहा


"अरे भैया इसकी क्या ज़रूरत थी, आप आ गए समय निकाल कर यही बहुत है, और बताये घर पर भाभी बच्चें कैसे है, और सौरभ की पढ़ाई पूरी हो गयी या नही कब आ रहा है शहर से, उससे कहना बुआ याद कर रही थी " सुष्मा जी ने कहा

नही, जो तेरा है उसे मैं कैसे रख सकता हूँ, याद नही तुझे पिता जी ने सारी ज़मीन मुझे देते हुए क्या कहा था,

"यही की भले ही वारिस होने के नाते इस ज़मीन पर तेरा हक़ है, लेकिन इस पर उगने वाला अनाज का एक चौथाई हिस्सा तेरी बहन का होगा, फिर चाहे तू उसे पैसे दे या अनाज और ज़ब कभी भी ईश्वर ना करे तेरी बहन पर कोई बुरा समय आया तो तुझे उस ज़मीन का एक चौथाई हिस्सा देना होगा " सुष्मा जी ने कहा अपने भाई की बात काट कर


"तो फिर कैसे मैं पिता जी की बात का मान नही रखता " सुष्मा जी के भाई ने कहा


"आप दोनों भाई बहन की बाते हो गयी हो तो हम भी कुछ बोले, जाइये सुष्मा जी आपके भाई साहब और हमारे साले साहब घर आये है, उनके लिए नाश्ते पानी का और खाने का इंतेज़ाम करे " दीन दयाल जी ने कहा


"अरे मैं तो भूल ही गयी, आप बाते करो मैं रसोई से अभी आती हूँ " सुष्मा जी ने कहा

"आप यही रुकिए मैं लाती हूँ, आप बैठ कर बाते कीजिये," राधिका ने कहा और वहाँ से चली जाती है

"ये अपने आशीष की बहु है, बहुत संस्कारी मालूम पडती है, लगता नही शहर से आयी है  " सुरेश जी ने कहा


"ठीक कहा साले साहब आपने, और सुनाओ अपने बारे में, ज़रा गेहूं दिखाना मुट्ठी में लेकर, देखने में तो बहुत अच्छे लग रहे है, लगता है तुमने भी किसी औषधी का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया, फसल अच्छी करने के खातिर, जानते नही हो इससे खेत की उर्वरता पर असर पड़ता है " दीन दयाल जी ने गेहूं को देखते हुए कहा


"नही,, नही जीजा जी,, ऐसी कोई बात नही है, ये तो बस आपके भतीजे सौरभ का कमाल है " सुरेश जी ने कहा


"क्या मतलब तुम्हारा?, भला उसका क्या कमाल? वो तो पढ़ने के लिए शहर रहता है " दीना नाथ जी ने कहा

"सही कहा आपने जीजा जी, आपका भतीजा शहर रहता है, लेकिन जो वो पढ़ाई कर रहा है, वो कृषि से सम्बंधित ही तो है, पिछले साल ज़ब वो आया हुआ था, तब खेत की फसल कट चुकी थी, जिसके बाद उस पराली में आग लगाना थी, लेकिन सौरभ ने बताया की पराली जलाना अच्छी बात नही है, उससे पर्यावरण पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है, और उसी के साथ साथ आग जलाने से ज़मीन में रहने वाले छोटे छोटे जीव जो की फसल पर लगने वाले कीड़ो को खा जाते है, वो भी जल जाते है, इसलिए उसने शहर से कुछ केमिकल मंगाया जिसे उस पराली पर डालने से वो पराली एक या दो दिन में गल गयी और सड गयी जिससे की खाद बन गयी खेत जोतने के बाद ज़ब बीज बोये और फसल आयी तो वो बेहद अच्छी थी और ये जो गेहूं आप देख रहे है ये भी उसी खेत से उगे है, तभी तो देखिये कितने अच्छे लग रहे है, " आम के आम और गुठलीयों के भी दाम " वाली कहावत सच हो गयी, मेहनत करके उस पराली को जलाने से भी छुटकारा मिल गया और वो सड गल कर खाद बन गयी जिसके बाद उससे उगने वाली फसल पहले से अच्छी थी जिसका बाजार में अधिक मूल्य मिला " सुरेश जी ने कहा


"वाह, ये तो बढ़िया था, आम भी मिल गए और साथ ही गुठलीयों के भी दाम मिल गए, देखा मानव बेटा तुम्हारे लिए एक और मुहावरें का अर्थ समझना आसान हो गया, ज़ब एक काम करके दो से ज्यादा मुनाफा हो जाए तब उसे ही कहते है " आम के आम, गुठलीयों के दाम "दीना नाथ जी ने मानव को गोदी में बैठाते हुए कहा

अपने दादा की बात सुन मानव मुस्कुराया और भागता हुआ अपनी माँ के पास चला गया


मुहावरों की दुनिया हेतु 

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4 Comments

Rajeev kumar jha

31-Jan-2023 01:17 PM

Nice 👍🏼

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अदिति झा

26-Jan-2023 07:50 PM

Nice 👍🏼

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madhura

24-Jan-2023 03:25 PM

very nice

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